Bank Loan Rule: जब व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, तो वह अक्सर बैंक या एनबीएफसी से लोन लेने का रास्ता चुनता है। इस स्थिति में कई बार बैंक और उनके एजेंट ग्राहकों की मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। ऐसे में अगर आपके पास पूरी जानकारी नहीं है, तो आप बैंक की चालाक रणनीतियों में फंस सकते हैं और आपको अनजाने में महंगा लोन लेना पड़ सकता है।
फ्लैट रेट vs रिड्यूसिंग रेट सस्ते लोन का भ्रम
बैंक या एजेंट अक्सर कहते हैं, “हम 9% फ्लैट रेट पर पर्सनल लोन दे रहे हैं।” यह सुनकर ग्राहक लो इंटरेस्ट रेट समझकर लोन लेने को तैयार हो जाते हैं, जबकि हकीकत इससे बहुत अलग होती है।
- फ्लैट रेट इंटरेस्ट में ब्याज पूरे लोन पर हर महीने लगता है, भले ही मूलधन घटता रहे।
- जबकि रिड्यूसिंग रेट ऑफ इंटरेस्ट में जैसे-जैसे आप EMI भरते हैं, ब्याज की गणना घटते हुए मूलधन पर होती है।
उदाहरण के तौर पर, 8% फ्लैट रेट दरअसल 15.7% रिड्यूसिंग रेट के बराबर होती है। लेकिन बैंक एजेंट कभी भी यह सच्चाई नहीं बताते।
प्रोसेसिंग फीस से बढ़ती है लोन की लागत
जब ग्राहक लोन की दरों के बारे में सवाल करते हैं, तो बैंक स्टाफ दूसरी फीस और चार्जेस के जरिए नुकसान की भरपाई करता है। इनमें सबसे आम है लोन प्रोसेसिंग फीस, जो अक्सर 1-2% तक होती है, और 2,000 से 3,000 रुपये तक चार्ज किया जाता है। यह अतिरिक्त खर्च आपकी कुल लोन कॉस्ट को चुपचाप बढ़ा देता है।
एडवांस EMI का झांसा
कुछ मामलों में एजेंट आपको बताते हैं कि दो EMI पहले ही जमा करनी होगी। उदाहरण के लिए, अगर आप ₹5 लाख का लोन लेते हैं जिसकी EMI ₹24,000 है और आप दो EMI पहले ही दे देते हैं, तो आपकी लोन अमाउंट ₹5 लाख से घटकर ₹4.52 लाख रह जाती है। इससे आपकी प्रभावी ब्याज दर 14% से बढ़कर 16.6% तक पहुंच सकती है।
ग्राहक अक्सर इस चाल को समझ नहीं पाते क्योंकि वे सिर्फ मंजूर लोन राशि को लेकर चिंतित रहते हैं।
लोन एप्लिकेशन पर हस्ताक्षर कराने की जल्दी
बैंक एजेंटों का सबसे बड़ा फोकस होता है कि ग्राहक से जल्द से जल्द लोन एप्लिकेशन पर हस्ताक्षर करवा लिया जाए। अक्सर डॉक्युमेंट्स के क्लॉज इतने बारीक फॉन्ट में होते हैं कि ग्राहक उन्हें पढ़ ही नहीं पाता। उन्हें न तो समझने का वक्त मिलता है और न ही सलाह लेने का।
आप ऐसी शर्तों पर सहमति दे देते हैं जिनसे बाद में आपकी जेब और अधिकार दोनों प्रभावित होते हैं।
इंश्योरेंस जोड़ने की ट्रिक
बैंक कई बार लोन के साथ सिंगल प्रीमियम इंश्योरेंस पॉलिसी जोड़ देते हैं और उसका प्रीमियम भी लोन में ही शामिल कर देते हैं। ये पॉलिसी भले आपकी सुरक्षा के लिए हो, लेकिन इसकी बिक्री पूरी तरह से वैकल्पिक है।
RBI का नियम कहता है कि ग्राहक किसी भी कंपनी से इंश्योरेंस खरीद सकता है, लेकिन बैंक इस बात की जानकारी नहीं देते और ऐसा दिखाते हैं जैसे यह अनिवार्य है।
मौखिक वादों से सावधान रहें
कई बार कार लोन या कंज्यूमर लोन में एजेंट रोडसाइड असिस्टेंस, फ्री सर्विस, या एक्सटेंडेड वारंटी जैसे एड-ऑन फीचर्स का मौखिक वादा करते हैं। लेकिन यह सब कागजों में दर्ज नहीं होता। इससे ग्राहक बाद में कंपनी के खिलाफ कुछ भी साबित नहीं कर पाता।
ग्राहक को लगता है कि उसे फ्री सुविधाएं मिल रही हैं, लेकिन असल में वह बिना लिखित आश्वासन के ठगा जा रहा होता है।
कैसे करें खुद की सुरक्षा ?
- सिर्फ फ्लैट रेट देखकर लोन न लें, रिड्यूसिंग रेट को समझें और उसी पर तुलना करें।
- प्रोसेसिंग फीस, एडवांस EMI और अन्य चार्जेस को पूछकर समझें।
- लोन डॉक्युमेंट को पूरी तरह पढ़ें, समय लें, वकील या सलाहकार से राय लें।
- इंश्योरेंस को लेकर जबरदस्ती हो रही हो तो मना करें – यह आपकी पसंद है, बाध्यता नहीं।
- मौखिक वादों पर भरोसा न करें, सब कुछ कागजों में लिखवाएं।