First Class Admission Rules: नए शिक्षा सत्र 2025-26 से देशभर के स्कूलों में पहली कक्षा में प्रवेश लेने के लिए बच्चों की न्यूनतम आयु 6 वर्ष तय कर दी गई है। यह फैसला राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के अनुरूप लिया गया है, जिसमें बच्चों के मानसिक, सामाजिक और शैक्षणिक विकास को ध्यान में रखते हुए यह आयु सीमा निर्धारित की गई है। अब कोई भी बच्चा तभी पहली कक्षा में प्रवेश पा सकेगा जब उसकी उम्र प्रवेश की निर्धारित तिथि तक कम से कम 6 साल पूरी हो गई हो।
नई शिक्षा नीति में आयु सीमा तय करने का क्या है मकसद ?
NEP 2020 के मुताबिक, बच्चों को औपचारिक स्कूली शिक्षा में भेजने से पहले कम से कम तीन साल की पूर्व-प्राथमिक शिक्षा (प्री-स्कूल, नर्सरी, केजी) देना जरूरी है। इससे बच्चों की सोचने-समझने की क्षमता, सामाजिक व्यवहार और सीखने की आदत विकसित होती है।
पहली कक्षा में 6 साल की आयु तय करने के पीछे तीन मुख्य उद्देश्य हैं:
- बच्चा मानसिक रूप से औपचारिक शिक्षा के लिए तैयार हो
- हर बच्चे को समान प्रारंभिक अवसर मिले
- स्कूल की पढ़ाई में अधिक रुचि और सहभागिता बनी रहे
6 साल की आयु को लेकर क्या हैं राज्यवार छूट ?
हालांकि केंद्र सरकार ने यह नियम सभी राज्यों और स्कूलों पर लागू करने का आदेश दिया है, लेकिन कुछ राज्यों ने 6 महीने तक की छूट का प्रावधान रखा है ताकि जिन बच्चों की उम्र थोड़ी कम है, उनका शैक्षणिक वर्ष बर्बाद न हो।
उदाहरण के तौर पर:
राजस्थान में 31 जुलाई तक के प्रवेश को आधार माना जाता है। ऐसे में यदि बच्चा 31 जुलाई तक 5 साल 6 महीने का है, तो उसे पहली कक्षा में प्रवेश मिल सकता है।
माता-पिता के लिए जरूरी दिशा-निर्देश
बच्चों के प्रवेश के समय अब उम्र की जांच के लिए जन्म प्रमाण पत्र अनिवार्य कर दिया गया है। इसके बिना प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।
माता-पिता को चाहिए कि वे पहले से सुनिश्चित करें:
- बच्चे की जन्म तिथि दस्तावेज़ (Birth Certificate) तैयार हो
- बच्चा न्यूनतम आयु सीमा को पूरा करता हो
- पहले की नर्सरी/बाल वाटिका की पढ़ाई के रिकॉर्ड संभालकर रखें
ध्यान दें: यदि बच्चा पूर्व-प्राथमिक शिक्षा में पढ़ चुका है, तब भी पहली कक्षा में दाखिले के लिए उसकी उम्र 6 साल पूरी होनी चाहिए। पहले की पढ़ाई को आयु में कोई रियायत नहीं मिलेगी।
पुराने छात्रों पर नहीं होगा असर
शिक्षा विभाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि नया आयु सीमा नियम केवल नए प्रवेश लेने वाले बच्चों पर ही लागू होगा।
जो बच्चे पहले से आंगनवाड़ी, बालवाड़ी, बाल वाटिका या किसी भी प्री-प्राइमरी क्लास में पढ़ रहे हैं, उनकी उम्र को लेकर कोई परिवर्तन नहीं होगा।
इसका मतलब यह है कि पुराने बच्चों का शैक्षणिक सफर जैसे चल रहा है, वैसा ही जारी रहेगा। केवल नए दाखिलों पर यह नियम लागू होगा।
सभी सरकारी और निजी स्कूलों पर लागू होगा यह नियम
पहले कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 5 साल या उससे कम उम्र के बच्चों को भी कक्षा 1 में प्रवेश दिया जाता था।
लेकिन अब NEP 2020 के तहत सभी सरकारी और निजी स्कूलों में यह नियम लागू कर दिया गया है कि पहली कक्षा में केवल 6 साल पूरे करने वाले बच्चों को ही प्रवेश मिलेगा।
इससे पूरे देश में एक समान शिक्षा प्रणाली और प्रवेश नीति लागू हो सकेगी।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम से है यह बदलाव जुड़ा
यह नया प्रावधान शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (RTE Act) के दायरे में लाया गया है। इस अधिनियम के अनुसार, 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त है।
अब NEP 2020 की सिफारिशों के अनुसार, शिक्षा की शुरुआत पूर्व-प्राथमिक से मानी जाएगी, और पहली कक्षा में प्रवेश के लिए 6 साल की उम्र अनिवार्य मानी गई है।
क्यों जरूरी था यह बदलाव ?
भारत में अलग-अलग राज्यों में स्कूलों में दाखिले को लेकर अलग-अलग उम्र सीमाएं थीं। इससे:
- बच्चों के सीखने में अंतर पैदा होता था
- बच्चे मानसिक रूप से तैयार नहीं होते थे
- कुछ मामलों में उम्र कम होने से बच्चे पिछड़ जाते थे
NEP 2020 का उद्देश्य इन सभी असमानताओं को समाप्त करके शिक्षा की गुणवत्ता और तैयारी में एकरूपता लाना है।
बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए जरूरी कदम
6 साल की आयु सीमा तय करने का यह फैसला बच्चों के भविष्य को मजबूत बनाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। इससे उन्हें शुरुआती उम्र में ही सही शिक्षा, सोच और व्यवहार विकसित करने का मौका मिलेगा।