Husband Property Rules: संपत्ति विवादों से जुड़ी जटिलताओं में एक अहम सवाल लंबे समय से चर्चा में है, क्या हिंदू पत्नी को पति की संपत्ति पर पूर्ण अधिकार है, खासकर जब संपत्ति वसीयत के जरिए दी गई हो और उसमें कुछ शर्तें और प्रतिबंध हों ? इस सवाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट अब अंतिम फैसला देने जा रहा है, जो देश की लाखों महिलाओं के भविष्य को प्रभावित कर सकता है।
क्यों बना यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मुद्दा ?
यह मामला 1965 में शुरू हुआ जब कंवर भान नामक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को जीवनभर के लिए जमीन का एक टुकड़ा दिया। शर्त यह थी कि पत्नी की मृत्यु के बाद वह संपत्ति उत्तराधिकारियों को लौट जाएगी। लेकिन कुछ सालों बाद पत्नी ने उस जमीन को बेच डाला और खुद को उसका पूर्ण मालिक बताया। इस पर बेटे और पोते ने कोर्ट में मुकदमा दायर किया।
पहले निचली अदालत ने पत्नी के पक्ष में फैसला दिया
1977 में निचली अदालत ने इस आधार पर पत्नी के पक्ष में फैसला दिया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 14(1) के तहत जब कोई हिंदू महिला किसी संपत्ति पर अधिकार प्राप्त करती है, तो वह उसकी पूर्ण मालिक हो जाती है। कोर्ट ने तुलसम्मा बनाम शेष रेड्डी केस का हवाला दिया, जिसमें यही बात स्पष्ट की गई थी।
लेकिन हाईकोर्ट ने किया विरोध दिया 1972 के फैसले का हवाला
बाद में जब मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा, तो वहां 1972 के कर्मी बनाम अमरु सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाकर कहा गया कि यदि वसीयत में शर्तें और सीमाएं लगाई गई हैं, तो महिला को पूर्ण स्वामित्व नहीं मिल सकता। यहीं से यह विवाद और गहरा हो गया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- यह सिर्फ कानूनी नहीं सामाजिक मुद्दा भी है
9 दिसंबर 2024 को जस्टिस पीएम नरसिम्हा और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने यह मामला एक बड़ी बेंच को भेजने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं है, बल्कि लाखों हिंदू महिलाओं के अधिकारों और जीवन से जुड़ा सामाजिक मामला भी है। यह फैसला तय करेगा कि क्या महिलाएं वसीयत में मिली संपत्ति को स्वतंत्र रूप से बेच सकती हैं या नहीं।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम क्या कहता है ?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार:
- पत्नी को पति की स्वयं अर्जित संपत्ति पर अधिकार होता है।
- अगर पति की मृत्यु बिना वसीयत के हुई हो, तो संपत्ति पत्नी, बच्चों और माता-पिता में बराबर बंटती है।
- यदि पति ने वसीयत बनाई हो, तो वही मान्य होती है।
- यदि पति की वसीयत में पत्नी को कोई शर्त या सीमित अधिकार देकर संपत्ति दी गई है, तो उस संपत्ति पर महिला का अधिकार पूर्ण नहीं माना जाएगा।
नॉमिनी होने से बदलता है अधिकार का दायरा ?
यदि पति ने पत्नी को किसी बीमा पॉलिसी, बैंक खाते या संपत्ति में नॉमिनी बनाया हो, तो उसे वह हिस्सा मिलेगा। लेकिन नॉमिनी होने का मतलब पूरा मालिकाना हक नहीं होता, यह कानूनी रूप से सिर्फ एक ट्रांसफर माध्यम होता है, न कि स्वामित्व का प्रमाण।
फैसला आने से पहले की उलझनें
अभी जब तक सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच इस पर अंतिम निर्णय नहीं दे देती, तब तक यह स्पष्ट नहीं है कि महिला को वसीयत में दी गई संपत्ति पर पूरी स्वतंत्रता मिलेगी या वह शर्तों के अधीन रहेगी। यह फैसला महिलाओं के कानूनी अधिकारों को स्पष्ट करने में बड़ी भूमिका निभाएगा।
महिला अधिकारों की दिशा में एक निर्णायक मोड़
यह मामला केवल एक परिवार के विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश में महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को लेकर एक नया मानदंड स्थापित कर सकता है। आने वाले समय में यह निर्णय महिलाओं को संपत्ति पर स्वामित्व, स्वतंत्रता, और वसीयत में दिये गए अधिकारों के भविष्य को परिभाषित करेगा।