School Bag Weight: स्कूली बच्चों के बैग का भारी वजन एक पुराना और गंभीर मुद्दा है। छोटे बच्चों के कंधों पर भारी बस्ते का बोझ उनके शारीरिक विकास और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है। हालांकि इस विषय में कई बार सुझाव दिए गए हैं, लेकिन हाल के वर्षों में सरकारों और शैक्षणिक संस्थानों ने इस पर कड़े दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
1993 में उठी थी पहली बार बैग के बोझ की चिंता
बच्चों के बैग के भारी वजन की समस्या को सबसे पहले 1993 में यशपाल कमिटी ने गंभीरता से उठाया था। कमिटी ने सुझाव दिया था कि पाठ्यपुस्तकों को स्कूल की संपत्ति मानते हुए बच्चों को लॉकर की सुविधा दी जाए, ताकि उन्हें रोजाना किताबें घर लाने-ले जाने की जरूरत न पड़े।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी है वजन की सीमा
अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार, किसी भी बच्चे के कंधे पर रखा जाने वाला बैग उसके शरीर के कुल वजन का अधिकतम 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि किसी बच्चे का वजन 20 किलोग्राम है, तो उसके बैग का वजन 2 किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए।
केंद्रीय विद्यालय संगठन (KV) ने तय की बैग की सीमा
केंद्रीय विद्यालयों में बच्चों के बैग के वजन को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जो इस प्रकार हैं:
- कक्षा 1 और 2: अधिकतम 2 किलोग्राम
- कक्षा 3 और 4: अधिकतम 3 किलोग्राम
- कक्षा 5 से 8 तक: अधिकतम 4 किलोग्राम
इन नियमों के पीछे उद्देश्य यह है कि बच्चों पर अनावश्यक बौद्धिक और शारीरिक दबाव न डाला जाए।
मध्य प्रदेश सरकार ने भी उठाया ठोस कदम
मध्य प्रदेश सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत नर्सरी से दूसरी कक्षा तक के बच्चों को होमवर्क से राहत देने के साथ ही उनके बैग के वजन को भी सीमित किया है। अब नर्सरी से दूसरी कक्षा तक के बच्चों का बैग 2.2 किलो से अधिक नहीं होना चाहिए।
क्या है हल स्कूलों में लॉकर और डिजिटल लर्निंग
बच्चों के बैग को हल्का करने के लिए दो प्रमुख उपाय सामने आए हैं:
- लॉकर की सुविधा: स्कूलों में लॉकर प्रदान कर, बच्चों को हर किताब रोज घर लाने की जरूरत से राहत मिल सकती है।
- डिजिटल लर्निंग: डिजिटल प्लेटफॉर्म और स्मार्ट क्लासेज के माध्यम से पाठ्यसामग्री को डिजिटल रूप में छात्रों तक पहुंचाया जा सकता है, जिससे बैग की जरूरत ही कम हो जाए।
माता-पिता क्या कर सकते हैं ?
- बैग में केवल आवश्यक किताबें और कॉपियां ही रखें।
- बैग का वजन रोज जांचें, और अगर जरूरत हो तो शिक्षक से बात करें।
- बच्चों को दो कंधों पर बैग टांगने की आदत डालें, ताकि वजन संतुलित रहे।
बस्ते का वजन न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य का भी सवाल
भारी बस्ते का असर सिर्फ बच्चों की पीठ या कंधों पर नहीं होता, यह उनकी मानसिक थकान और सीखने की क्षमता पर भी प्रभाव डालता है। कई अध्ययनों से पता चला है कि कम उम्र के बच्चों पर अधिक शैक्षणिक दबाव उन्हें पढ़ाई से दूर कर सकता है।
हल्का बस्ता बेहतर शिक्षा
सरकार, स्कूल और माता-पिता तीनों की जिम्मेदारी है कि बच्चों को बोझ रहित शिक्षा का माहौल प्रदान करें। इसके लिए बैग के वजन को कम करना जरूरी है। समय पर बैग की जांच, पाठ्यक्रम का संतुलन, और स्कूलों में लॉकर की व्यवस्था इस दिशा में सार्थक कदम हो सकते हैं।